आज है शियों के घर में इमाम हसन ए दस्तरख़्वान

जहां आजकल मंहगाई के ज़माने में दो जून की रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है ,वहीं 1400 साल से बदसूरत जारी हसन इमाम के दस्तरखान में शिया लोग कोई कमी नहीं छोड़ते।
इस इमाम हसन के दस्तरख़्वान में लज़ीज़ पकवान होना लाजमी है।
कभी आपने सोचा है आखिर क्यों होता है यह दस्तरख़्वान।
दरअसल यह दस्तरख़्वान मोहम्मदसाहब के सबसे बड़े नवासे यानी बिंते फातिमा के बड़े बेटे इमाम हसन के द्वारा आजसे 1400 साल पहले खासकर गरीबों और मिस्कीनो की दावत के लिए किया गया था।
ऐसा कहा जाता है जब इमाम हसन साहब 5 साल के थे तो फातिमा ज़हरा को ख्वाब आया कि इमाम हसन गरीबों को अपने हाथो से घर के बने लज़ीज़ पकवान परोस रहे है इस बात का ज़िक्र उन्होने अपने बड़े बेटे हसन से ज़िक्र किया।
22 जमादुसतनी को 5 साल के इमाम ने मा फातिमा के बनाए गए पकवानों को गरीबों में बांटना और खिलाना शुरू कर दिया हालांकि वह खुद हमेशा मक्के की रोटी और चटनी खाने खाते थे लेकिन गरीबों को लजीज खाने परोसते थे।
एक बार वह जब एक गरीब शख्स को खाना परोस रहे थे उन्होंने देखा कि वह शख्स एक निवाला खाता था और दूसरा निवाला रख देता था इस पर इमाम ने फरमाया ऐ शक्स तो एक एक निवाला क्यों बचा रहा है इस पर उसने बताया कि वह यह निवाले अपने बच्चों के लिए बचा रहा है जो भूखे है तो फिर इमाम ने उसे उसके पूरे घर को दावत पर बुलाया और इस बात का ध्यान रखा कि उनके मोहल्ले में कोई भूखा ना सुए।
कुछ लोग इस दिन को अबू बक्र कि वफात से जोड़कर भी मनाते है।


यह दस्तरख़्वान भारत और पाकिस्तान में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।


इस दस्तरख़्वान में बिरयानी, कोरमा, मिठाइयां, फल, मेवे और हर लज़ीज़ खाना शामिल होता है जिसे ज़्यादातर घर की औरतें बनती है।