आइए जाने वीर योद्धा तानाजी मालसुरे के बारे में

आइए जाने वीर योद्धा
तानाजी मालसुरे की 12 खासियत 
1) तानाजी का जन्म महाराष्ट्र में सतारा के गडोली शहर के एक कोली परिवार में हुआ था।
2) मराठा योद्धा शिवाजी को जानने वाले शायद ही ये जानते होंगे कि तानाजी उनके बेहद करीब दोस्त में से एक थे। वे दोनों बचपन के साथी थे और उनके साथ हर लड़ाई में शामिल होते थे। शिवाजी की तरह वे खुद भी उतने ही बहादुर और जांबाज था।
3) 1670 में हुई सिंहगढ़ की लड़ाई उनकी वीरता की कहानी को दर्शाती है
4) एक बार वे शिवाजी के साथ औरंगजेब से मिलने दिल्ली जाते है तो औरंगजेब उन दोनों को बंदी बना लेते है। तब शिवाजी और तानाजी मिठाई के पिटारे में छिपकर वहां से भाग निकले थे।
5) जब शिवाजी की माता ने 'कोंडाना' किले को जीतने की इच्छा अपने बेटे शिवाजी के सामने रखी। इस पर शिवाजी ने अपनी माँ के दिल की इच्छा पूरी करने के लिए सभी सैनिकों को राजसभा में बुलाया और पूछा कि कोंडाना किला को जीतने के लिए कौन जायेगा? वहां मौजूद कोई भी ये साहस ना कर पाया पर तानाजी ने ये चुनौती स्वीकार की और बोले, “मैं जीतकर लाऊंगा कोंडाना किला”।
6) तानाजी दिमाग से तो तेज़ थे ही बल्कि शरीर से भी उतने ही हट्टे-कट्टे और शक्तिशाली थे।
8) 'सिंहगढ़ की लड़ाई' में तानाजी को नेतृत्व का काम सौंपा गया। वे अपने काम को लेकर इतने दढ़ थे की उन्होंने अपने ने पुत्र का विवाह छोड़ दिया।
9) आपको बता दें कि उस समय 'उदयभान राठौड़' जैसा भयंकर योद्धा किले का बचाव कर रहा था। उनसे टक्कर लेना शेर की गुफा में जाने जैसा था। लेकिन ताना जी ने इसकी बिलकुल भी परवाह ना करते हुए किले की तरफ कूच किया।
10) तानाजी की बुद्धि का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते है जब उन्होंने युद्ध के वक्त पहाड़ पर चढ़ने के लिए यशवंती नाम की छिपकली का इस्तेमाल किया। यह ये छिपकली एक मॉनिटर छिपकली थी और जानवरों पर नज़र रखती थी। उन्होंने इस मॉनिटर छिपकली को रस्सियों से बांध दिया और फिर इसे किले की दीवारों का पैमाना बना दिया। एक बार जब यह शीर्ष पर पहुंच गया, तब तानाजी ने अपने आदमियों को छिपकली से झूलने वाली रस्सियों का उपयोग करके किले की दीवार पर चढ़ने की आज्ञा दी। इस रणनीति का उपयोग करते हुए, तानाजी और उनके 300 लोगों ने किले के दक्षिण की ओर पैमाना बनाया। इस तरह से उन्होंने पहाड़ पर चढ़ने में सफलता हासिल की।
11) यह कहा जाता है कि तानाजी की दुश्मन जनरल उदयभान राठौड़ के खिलाफ एक महान लड़ाई थी। वे किले को अंत में जीत तो लेते है पर गंभीर रूप से घायल हो जाते है। युद्ध को दौरान वे वीरगति को प्राप्त हो जाते है।
12) उनकी याद में कोंढाणा दुर्ग का नाम बदलकर सिंहगढ़ कर दिया गया है। पुणे नगर के 'वाकडेवाडी' नामक भाग का नाम बदलकर 'नरबीर तानाजी वाडी' कर दिया गया है। इसके इलावा तानाजी के अनेकों स्मारक हैं।