जानिए पूनम यादव के बारे में जिसने दिलाई भारत को महिला विश्व कप में जीत

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की लेग स्पिनर पूनम यादव (4 विकेट) की बेहतरीन गेंदबाजी और दीप्ति शर्मा (49*) की शानदार पारी की बदौलत भारतीय टीम ने महिला टी-20 विश्व कप में विजयी शुरुआत की है। भारत ने पहले मुकाबले में मजबूत ऑस्ट्रेलिया को 17 रन से हरा दिया। टॉस हारकर बल्लेबाजी करने उतरी भारतीय महिला टीम ने ऑस्ट्रेलिया के सामने 133 रन का लक्ष्य रखा। जवाब में कंगारू टीम 115 रन पर ऑलआउट हो गई और मैच हार गई। भारत की तरफ से पूनम यादव ने चार ओवर में 19 रन देकर चार, जबकि शिखा पांडे ने तीन विकेट चटकाए।इस मैच में भारतीय लेग स्पिनर पूनम की जितनी तारीफ की जाय उतनी कम है। विश्व कप की पहली जीत में पूनम ने अहम भूमिका निभाई। वह हैट्रिक लेने से चूक गईं। मैच के बाद उन्होंने कहा कि यह तीसरी बार है जब वह हट्रिक से चूकीं हैं। पूनम ने 5 अप्रैल 2013 को बांग्लादेश के खिलाफ महिला टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच में डेब्यू किया था।  डेब्यू मैच में ही पूनम ने शानदार प्रदर्शन किया था। उस मैच पूनम ने चार ओवर में 21 रन देकर तीन विकेट झटके थे। टी-20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पूनम का बेस्ट गेंदबाजी रिकॉर्ड बांग्लादेश के खिलाफ ही है। पूनम ने बांग्लादेश के खिलाफ नौ रन देकर चार विकेट चटकाए थे। 


पूनम यादव का जन्म 24 अगस्त 1991 को आगरा में हुआ था। उनके पिता रघुवीर सिंह सेना से सेवानिवृत्त और उनकी मां मुन्नी देवी हाउसवाइफ हैं। पूनम ने अपनी माता-पिता की प्रेरणा से क्रिकेट जगत में नाम रौशन किया है। खेल दिवस पर उन्हें राष्ट्रपति ने अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया था। पूनम अर्जुन अवार्ड पाने वाली देश की 54वीं क्रिकेटर हैं। पूनम यादव को खेल के शुरुआती सफर में एक बड़ी रुकावट का सामना करना पड़ा था। वाक्या सन 2009 का है जब लड़कों के साथ प्रैक्टिस करने की शिकायत पर वह दो-तीन दिन तक मैदान में नहीं जा सकी थीं। हालांकि, उनकी मां समझ चुकी थीं कि पूनम में क्रिकेट का जुनून है। उसे कई दिनों तक रोका नहीं जा सकता। इसके बाद पूनम के भाई को उन्हें मैदान में लेकर जाने की जिम्मेदारी दी गई।


बहन जहां हर रोज मैदान में घंटों अभ्यास करती थी, उस समय तक उनका भाई मैदान में ही रहता था। पूनम की मां मुन्नी देवी बताती हैं कि दो-तीन दिन जब पूनम प्रैक्टिस के लिए नहीं जा सकी, तो घर में ही गेंदबाजी का एक्शन करती रहती थीं। उनके पिता रघुवीर सिंह ने भी साफ कर दिया था कि कोई कुछ भी कहे, बेटी को खेलने दो, आगे बढ़ने दो। मुन्नी देवी बताती हैं कि पूनम ने उनसे कहा था कि मां जुनून से ही जग जीता जा सकता है। इसलिए मुझे खेलने दें।



पूनम का रहन-सहन शुरू से ही टॉम ब्‍वॉय की तरह रहा। वह हमेशा लड़कों की तरह कपड़े पहनती थीं और लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती थी।



एक तरफ पिता की सख्‍ती थी, दूसरी तरफ क्रिकेट का जुनून। आखिर पूनम ने एक दिन घर छोड़ दिया था। हालांकि बाद में कोच उन्‍हें लेकर वापस घर लौटीं। पिता को समझाया और आखिर पिता भी मान गए।
करियर की शुरुआत में पूनम ने भेदभाव को भी झेला। लिंगभेद एक बड़ी मुश्किल रही। लोग फिकरे कसते थे कि एक लड़की आखिर कैसे क्रिकेट खेलेगी, वह रात को कैसे आना-जाना करेगी। यह बात अलग है कि पूनम ने केवल अपने लक्ष्‍य पर ध्‍यान केंद्रित रखा।
जब पूनम का सिलेक्‍शन सेंट्रल जोन टीम के लिए हुआ तो वह यूपी की टीम का अंग बन गई। वर्तमान में वह डोमेस्टिक लेवल पर रेलवे को रिप्रजेंट करती हैं।
रेलवे से जुड़ना पूनम के लिए अहम रहा। इसके बाद उनका जीवन भी बदला और खेल भी निखरा।
वर्ष 2013 में पूनम ने बांग्‍लादेश के खिलाफ टी-20 क्रिकेट फार्मेट में पर्दापण किया था। इसके एक सप्‍ताह बाद ही उन्‍होंने वनडे क्रिकेट में अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी थी।
वर्ष 2014 में पूनम ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्‍ट मैच खेला जो कि उनका एकमात्र टेस्‍ट मैच है।