जब विष पीकर दुनिया को बचाने आए थे भोले शंकर और बन गए नीलकंठ।
भगवान शिव को उनके भक्त कई नामों से पुकारते हैं। कोई उन्हें भोले कहता है तो कोई महादेव तो कोई महेश। शिव बहुत भोले हैं वे अपने भक्तों में कोई भेद नहीं करते हैं इसलिए उन्हें भोले कहते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए भी अन्य देवी देवताओं की तरह महंगी या दुर्लभ चीजों का चढ़ावा नहीं चढ़ाना पड़ता।
आपको बता दे कि भगवान के असंख्य नामों में एक नाम नीलकंठ भी है। भोलेशंकर को नीलकंठ के नाम से भी जानते हैं। आज आपको हम बताने जा रहे है कि भगवान शंकर के नीलकंठ नाम पड़ने के पीछे क्या कहानी है।
जब समुद्र मंथन हो रहा था तब समुद्र से कई अच्छी चीजों के साथ विष भी निकला था। अच्छी चीजों के लिए असुर और सुर दोनों तैयार थे लेकिन विष पीने के लिए कोई भी तैयार नहीं था। हैरानी की बात तो यह है कि उस विष की एक भी बूंद अगर पृथ्वी पर गिर जाती तो तबाही आ जाती। ऐसे में भगवान शंकर ने लोगों की रक्षा करने के लिए समुद्र से निकले विष को पी लिया।
मां पार्वती यह देख समझ गईं कि भगवान शंकर के लिए विष घातक साबित हो सकता है इसलिए उन्होंने अपने हाथों से भगवान शंकर का गला पकड़ लिया और विष गले में ही रोक लिया। विष के कारण भगवान शिव का गला नीला हो गया और इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।